आदिवासी युवक की हत्या में कांग्रेसी कार्यकर्ता व कांग्रेस का हाथ पिता ने लगाया गंभीर आरोप

रायपुर ब्रेकिंग न्यूज /  आदिवासी युवक की हत्या को आत्महत्या का रूप देने के मामले में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का हाथ होना व हत्या करना बताया गया ,मालूम हो कि विगत वर्ष अप्रैल 2023 को 17 साल के आदिवासी नाबालिग लड़के की लाश एक पेड़ से लटकता हुआ मिलता है जिसे शिकायत/ सूचना पर बस्तर के नरहरपुर अंतर्गत मासूलपानी पुलिस लाश बरामद करती है जिसे आत्महत्या समझ मामले को बंद कर दिया जाता है जबकि पीड़ित पिता द्वारा बार-बार कहते आ रहे हैं कि मेरे बेटे को मारकर आत्महत्या का रूप दिया जा रहा है पुलिस ने पीड़ित पिता की एक नहीं सुनी ,  पीड़ित पिता न्याय पाने दर- दर भटकता रहा आज पीड़ित पिता गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के रायपुर संभाग अध्यक्ष फरीद कुरैशी को ज्ञापन सौंपकर अपने पुत्र की हत्या को लेकर न्याय दिलाने की मांग की गई पीड़ित पिता ने बताया कि मेरे पुत्र कि हत्या में सक्रिय कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का हाथ है इन्होंने ने ही मेरे पुत्र कि हत्या की है और कांग्रेस शासनकाल में कांग्रेस का संरक्षण पाते हुए हत्या को आत्महत्या दिखाते हुए हत्या के मामले को पुलिस ने गंभीरता से नहीं ली है ज्ञात हो कि नरहरपुर थानांतर्गत मासूलपानी में विगत वर्ष आदिवासी युवक 17 वर्षीय खिलेश्वर कोडोपी पिता अशोक कोडोपी की लाश गांव के पास पेड़ पर संदेहास्पद स्थिति में लटकती मिली जिसे आत्महत्या क़रार दिया गया जबकि पिता अशोक कोडोपी बेटे की हत्या करना बता रहे हैं पिता का कहना है कि मेरे बेटे की लटकती शव को देखकर नहीं लग रहा कि मेरे बेटे ने आत्महत्या की है लटकती पेड़ पर शव के नीचे पड़े  हुए पत्थरों पर बेटे के दोनों पैर टिके हुए हैं उस स्थिति में कोई भी कैसे आत्महत्या कर सकता है साथ ही मेरे बेटे का मोबाइल फोन व पैर में पहने चप्पल घटनास्थल से आधा  किलोमीटर दूर एक सप्ताह बाद मिलता है पिता ने यह भी बताया कि लटकती हुई लाश पर जो कपड़े पहने हुए हैं वह मृतक का नहीं है पीड़ित पिता ने बताया कि आत्महत्या नहीं है बल्कि सोची समझी रणनीति पूर्वक की गई हत्या हैं गांव के ही सक्रिय कांग्रेस कार्यकर्ता दुर्गेश मंडावी व अन्य के द्वारा मेरे पुत्र कि हत्या की गई है  जिसे भरपूर प्रयास कर आत्महत्या का रूप दिया गया है ।
पीड़ित पिता ने कहा कि न्याय पाने के लिए पुलिस प्रशासन के डी आई जी कांकेर,एस डी एम कांकेर, जिला कलेक्टर कांकेर, थाना प्रभारी नरहरपुर कांकेर, अनुविभागीय अधिकारी कांकेर, उ,ब, कांकेर छ ग मे कई आवेदन प्रस्तुत किए जाने के पश्चात आज दिनांक तक न्याय नहीं मिल रहा है तथा न्याय पाने दर दर भटक रहे हैं कुछ दिनों पहले पीड़ित पिता ने राजधानी हलचल टीम को अपनी पीड़ा बताते हुए कहा था कि जल्द ही मेरे पुत्र कि हत्या करने वाले व संरक्षण देने वालों की मिडिया / शासन प्रशासन/ जनता के समक्ष खुलासा किया जाऐगा,आज गोंडवाना गणतंत्र पार्टी संभाग अध्यक्ष को मांग पत्र सौंप पुत्र कि हत्या में शामिल आरोपी व आरोपीयों को संरक्षण देने वालो का खुलासा किया गया पीड़ित पिता ने खुलासा करते हुए कहा कि मेरे पुत्र कि हत्या में सक्रिय कांग्रेस कार्यकर्ता दुर्गेश मंडावी व अन्य लोग शामिल हैं तथा इन आरोपीयों को बचाने में कांग्रेसियों का हाथ है इसलिए मेरे पुत्र कि हत्या में शामिल आरोपी को कांग्रेस शासनकाल के दबाव में पुलिस द्वारा बचाया गया है। पीड़ित पिता व परिजनों ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से न्याय दिलाऐ जाने की मांग रखी है संभाग अध्यक्ष ने आश्वस्त किया कि आपको न्याय जरूर मिलेगी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी हर स्तर पर न्याय दिलाने संघर्षरत रहेंगी।
राजधानी हलचल टीम ने इस मामले को लेकर पूर्व में प्रमुखता से खबर प्रकाशित किया है।
 राजधानी हलचल टीम को पीड़ित पिता के द्वारा दिए जा रहे कथन व साक्ष्य तथा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के समक्ष मांग पत्र में आरोपीयों व संरक्षण देने वालों का खुलासा किए जाने पर  यह प्रतीत होता नजर आ रहा है कि कि पीड़ित पिता द्वारा लगाए जा रहे आरोप की सत्यता पर मुहर लग रहीं है।
 अगर मान लिया जाए कि पीड़ित पिता की सारे आरोप बेबुनियाद है तो फिर पुलिस द्वारा जांच में कमी कैसे पाई जा रही है आरोपीयों से पूछताछ क्यों नहीं किया गया जांच के दौरान गंभीरता क्यों नहीं दिखाई गई जैसे मृतक की लाश से कुछ आधा किलोमीटर दूर पर मृतक का चप्पल पाया जाता है ठीक एक सप्ताह बाद मृतक का मोबाइल फोन पाया जाता है  पुलिस द्वारा गंभीरता से जांच करती व आरोपीयों से कड़ाई से पूछताछ करती तो शायद आज न्याय की दिशा कुछ और होती पीड़ित पिता को न्याय पाने दर-दर भटकना नहीं पड़ता, नरहरपुर – कांकेर पुलिस के कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लग रहें हैं। न्याय पाने की आश में व भाजपा शासन में न्याय दिलाने को लेकर पीड़ित पिता ने गृहमंत्री के समक्ष शिकायत आवेदन प्रस्तुत कर न्याय की गुहार लगाई है देखना यह बाकी है कि क्या पीड़ित पिता को न्याय मिल पायेगी,आरोपी पुलिस गिरफ्त में नजर आएंगे या फिर आरोपी बच निकलने में कामयाब होंगे।

भानुप्रतापपुर SDO, TI प्रेमप्रकाश पुलिस बल द्वारा बलात घर घुसकर गुंडा-गर्दी करते हुये रात 10 बजे 50 वर्षीय दसमत साहू को उठाकर ले गये |

भानुप्रतापपुर SDO, TI प्रेमप्रकाश पुलिस बल द्वारा बलात घर घुसकर रात 10 बजे 50 वर्षीय दसमत साहू को उठाकर ले गये ।

भानुप्रतापपुर ।
घटना दिनांक 24.02.2024 को रात्रि 9.45 बजे एसडीओपी सिविल ड्रेस में और टी.आई प्रेमप्रकाश अवधिया, पुलिस बल के साथ देवपुरी रायपुर स्थित घर में बिना सूचना किसी नोटिस, बिना किसी सुचना दिये बलात घर में घुस आये और पूरे परिवार को अश्लील उराधाकार प्रताडित किया गालीगलौज धक्का मुक्की करते हुये एक कमरे में बंद कर दिया क्या तथा घर की विधवा मुखिया दशमत बाई साहू को उठाकर ले गये, जिसकी सूचना टिकरापारा थाना वालों को भी नहीं दी गई । पुलिस बर्बरता यही नहीं रूकी, तीसरे दिन हाईकोर्ट में पेश कर दिये जहां उच्च न्यायालय की फटकार पर मजबूरी में 26.02.2024 को दशमत को छोडना पडा । इसके बाद भी पुलिस वालों ने घर वाले को एक तुरन्त नोटिस बनाकर उसकी फोटोकापी थमाकर जबरन परिवार के सभी सदस्यों से अपने पेपर में हस्ताक्षर करवा लिये और दूसरे दिन थाने में फिर से बुलवाया गया । दशमत और दशमत के परिवार वाले इन पुलिस बनाम डाकुओं से इतना सहम गये है उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वे क्या करें । यही नहीं पुलिस वालों ने धमकी भी दिया है कि उन्हें फिर थाना ले जायेंगे। क्योंकि इन्हें नहीं पता कि पुलिस वाले इन्हें इस तरह आधी रात क्यों उठाकर ले गये, फिर थाना ले जाने की धमकी क्यों दिये। क्या पुलिस भी सुपाड़ी लेना शुरू कर दी है कि किसी के कहने पर अपने ड्रेस में कुछ भी कर सकते है। जिस पर दशमत के परिवार वालों ने पुलिस महानिदेशक और शासन प्रशासन को आवेदन लगाई है। इन्हें पता चला है कि भानुप्रतापुर वाले दशमत के घर के पडोस में एक मुस्लिम परिवार की लडकी भाग गई है इसी प्रकरण में तोहमत लगाने के लिये इनके कहने पर दशमत के बेटे उम्र लगभग 23 साल के 3 साल पहले लापता हो गये जिस पर आरोप थोपकर इस मामले को तूल देने की कोशिश और हिन्दु मुस्लिम रंग देने की कोशिश की जा रही है । दशमत और उसके परिवार ने शासन प्रशासन से गुहार लगाई है कि इस मामले पर तुरन्त कार्यवाही करे और दशमत के परिवार को न्याय दिलाये ।

हत्या को आत्महत्या का रूप देकर मामले को किया जा रहा रफा

रायपुर ब्रेकिंग न्यूज / -दफा पीड़ित पिता न्याय पाने दर- दर भटक रहा मालूम हो कि विगत वर्ष अप्रैल 2023 को 17 साल के नाबालिग लड़के की लाश एक पेड़ से लटका हुआ मिलता है जिसे शिकायत/ सूचना पर बस्तर के नरहरपुर अंतर्गत मासूलपानी पुलिस लाश बरामद करती है जिसे आत्महत्या समझ मामले को बंद कर दिया जाता है जबकि पीड़ित पिता द्वारा बार-बार कहते आ रहे हैं कि मेरे बेटे को मारकर आत्महत्या का रूप दिया जा रहा है पुलिस ने पीड़ित पिता की एक नहीं सुनी ,ज्ञात हो कि नरहरपुर थानांतर्गत मासूलपानी में विगत वर्ष अप्रैल 2023 को 17 वर्षीय खिलेश्वर कोडोपी पिता अशोक कोडोपी की लाश गांव के पास पेड़ पर संदेहास्पद स्थिति में लटकती मिली जिसे आत्महत्या क़रार दिया गया जबकि पिता अशोक कोडोपी बेटे की हत्या करना बता रहे हैं पिता का कहना है कि मेरे बेटे की लटकती शव को देखकर नहीं लग रहा कि मेरे बेटे ने आत्महत्या की है लटकती पेड़ पर शव के नीचे पड़े हुए पत्थरों पर बेटे के दोनों पैर टिके हुए हैं उस स्थिति में कोई भी कैसे आत्महत्या कर सकता है साथ ही मेरे बेटे का मोबाइल फोन व पैर में पहने चप्पल घटनास्थल से एक दो किलोमीटर दूर एक सप्ताह बाद मिलता है पिता ने यह भी बताया कि लटकती हुई लाश पर जो कपड़े पहने हुए हैं वह मृतक का नहीं है पीड़ित पिता ने बताया कि आत्महत्या नहीं है बल्कि सोची समझी रणनीति पूर्वक की गई हत्या हैं घटनाक्रम पश्चात जो तथ्य सामने आ रहे हैं वह हत्या करने की ओर इशारा कर रही है जिसे भरपूर प्रयास कर आत्महत्या का रूप दिया जा रहा है पीड़ित पिता ने राजधानी हलचल टीम को यह भी बताया कि नरहरपुर पुलिस हत्या के मामले को गंभीरता पूर्वक जांच के दायरे से दूर रख आत्महत्या का रूप दे रही है पीड़ित पिता ने कहा कि मेरे द्वारा हत्या करने की आशंका जताते हुए गांव के ही दो संदिग्धों का नाम बताएं जाने के बावजूद पुलिस ने गंभीरता से जांच नहीं की है।
पीड़ित पिता ने राजधानी हलचल टीम को कुछ आवेदन दस्तावेज सौपी है जो न्याय पाने के लिए पुलिस प्रशासन के डी आई जी कांकेर,एस डी एम कांकेर, जिला कलेक्टर कांकेर, थाना प्रभारी नरहरपुर कांकेर, अनुविभागीय अधिकारी कांकेर, उ,ब, कांकेर छ ग में न्याय पाने कई आवेदन प्रस्तुत किए जाने के पश्चात आज दिनांक तक न्याय पाने से वंचित हैं। तथा न्याय पाने दर दर भटक रहे हैं यह एक शर्मशार घटना है। पीड़ित पिता ने राजधानी हलचल टीम को यह भी बताया कि मेरे बेटे की हत्या किए जाने वाले आरोपीयों व आरोपीयों को संरक्षण देने वालो का जल्द ही मीडिया के सामने उजागर जाऐगा, जिसे पुलिस द्वारा बचाया जा रहा है। इस घटनाक्रम से अवगत हो राजधानी हलचल टीम ने पीड़ित पिता को आश्वस्त किया कि आपकी न्याय पाने गुहार मीडिया के माध्यम से शासन प्रशासन तक पहुंचाने का पुरा प्रयास रहेगी, राजधानी हलचल टीम द्वारा पीड़ित पिता के द्वारा दिए जा रहे साक्ष्यों के आधार पर जल्द बडा खुलासा किया जाना है जिससे यह मालूम हो सकें कि पीड़ित पिता को न्याय पाने में व आरोपीयों को किनका संरक्षण प्राप्त है जिसे कांकेर पुलिस बचाते नज़र आ रही है व पीड़ित पिता न्याय पाने दर – दर क्यों भटकने मजबूर हैं।

आधार फाइनेंस द्वारा तहसीलदार का फर्जी पत्र बनकर अपराधिकृत को दिया गया अनजाम ।।

आधार फाइनेंस लिमिटेड रायपुर के द्वारा अपराधिकृत कर तहसीलदार का फर्जी आदेश पत्र बनवाकर सबसे पहले भिलाई-3 दुर्ग थाने में उसकी पावती ली गई उसके बाद आधार फाइनेंस के अधिवक्ता के द्वारा उस पत्र को लेकर पीड़िता संगीता बर्मन के घर पर रखे हुए सामान को अवैध रूप से अपराधी गतिविधि कर घर का दरवाजा तोड़कर सामान को चोरी कर ले जाने की कोशिश की जा रही थी, जिसमें कुछ पुलिस वाले भी शामिल थे यह पूरी घटना DDनगर कॉलोनी चरोदा भिलाई की एक महिला देख रही थी, जिन्होंने मौके पर जाकर वीडियो बनाने की कोशिश की तो उन महिला को चार आदमियों ने पड़कर घर के अंदर खींच लिया एवं महिला के साथ बदतमीजी की कोशिश की गई जिसे वहा खड़े पुलिस वाले प्रत्यक्ष देख रहे थे । पुलिस वालों ने कुछ नहीं किया जब महिला ने संगीता बर्मन को कॉल करके बुलाया तो उसके बाद जब संगीता बर्मन आ गई उन्होंने वीडियो बनाना जारी रखा क्योंकि संगीता बर्मन एक अभियान कर्ज मुक्त भारत से जुड़ी हुई है, इस कारण उन्हें कुछ नियम एवं कानून बताए गए हैं, जिनका वह पालन करते हुए वीडियो बना रही थी, पुलिस वालों ने जब देखा कि उनका वीडियो बन रहा है, क्योंकि जो आदेश पत्र फर्जी था पुलिस वाले को पता था इसलिए पुलिस वाले वहां से निकाल कर भाग गए, इसके बाद आधार फाइनेंस लिमिटेड रायपुर(बैंक) वालों ने संगीता बर्मन एवं उनकी महिला मित्र और एक पुरुष को घर पर बंधक बनाकर रखा । कर्ज मुक्त भारत अभियान की टीम मौके पर पहुंची उसके बाद उन्होंने 112 में कॉल किया जिसमें पुलिस वाले नहीं आ रहे थे, बाद में अधिवक्ता रमन मिश्रा के द्वारा दुर्ग SP साहब को शिकायत कर 112 को कॉल किया तब 112 की गाड़ी आई एवं उनके द्वारा आधार फाइनेंस लिमिटेड रायपुर(बैंक) कर्मी को बुलाया गया जिन्होंने अपने हाथ से ताला को खोल दोनों बंधक महिलाओं को बाहर निकाला एवं खुद से स्वीकार किया कि उनके द्वारा दोनों महिलाओं को एवं उसे व्यक्ति को बंधक बनाया गया था । जिसमें की आधार फाइनेंस लिमिटेड रायपुर(बैंक) के अधिवक्ता भी शामिल थे, बाद में जब कंप्लेंट लिखने के लिए संगीता बर्मन एवं उनकी महिला मित्र थाने गई तो पुलिस द्वारा केवल शिकायत लिया गया FIR नहीं लिखा गया । …………………………………………………

राम तो बहाना है, संविधान और गणतंत्र पर निशाना है!!(आलेख : बादल सरोज)

अयोध्या में अभी तक अधबने मंदिर को लेकर देश भर में चलाई जा रही मुहिम की श्रृंखला में मध्य प्रदेश की सरकार ने बची-खुची संवैधानिक मर्यादा को भी लांघ दिया है। मध्यप्रदेश सरकार के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव के हस्ताक्षरों से 12 जनवरी को समस्त कलेक्टरों के लिए एक आदेश जारी किया गया है। इस आदेश में उन्होंने अयोध्या में निर्माणाधीन अधूरी इमारत – जिसे राम मंदिर कहा जा रहा है – के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के तारतम्य में 16 से 22 जनवरी तक सभी सरकारी भवनों, स्कूलों, मंदिरों, गाँवों, कस्बों, शहरों में किये जाने वाले आयोजनों को सूचीबद्ध करते हुए कलेक्टरों को उनके प्रबंधन के निर्देश दिए हैं। इस तरह पूरे सप्ताह भर तक मध्य प्रदेश की सरकार, जिस काम के लिए उसे चुना गया है, अपना वह सारा कामकाज छोड़कर दीये जलायेगी, मन्दिर सजायेगी, भंडारे करवायेगी और सरकारी बिल्डिंगों पर झालरें लटकवायेगी। इस आशय के बाकायदा आदेश भी जारी कर दिए गए हैं।

12 जनवरी को प्रदेश के सभी कलेक्टरों के लिए जारी किये गए आदेश क्रमांक 42/2024/अमुस/धर्मस्व का विषय है : “अयोध्या में दिनांक 22/01/2024 को प्रस्तावित भगवान श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम के तारतम्य में प्रदेश में विभिन्न आयोजन किये जाने संबंधी।“ मध्यप्रदेश शासन के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ राजेश राजौरा के हस्ताक्षरों से जारी इस आदेश में प्रदेश के सभी कलेक्टरों से 9 काम करने के लिए कहा गया है। इन कामों में पहला काम 16 जनवरी से 22 जनवरी तक प्रत्येक मंदिर में राम कीर्तन कराने, मंदिरों में दीप जलाने और हर घर में दीपोत्सव के लिए आमजन को जाग्रत करने का है।

इस पहले काम के अलावा बाकी के आठ कामों में हर नगर तथा हर गाँव में राम मंडलियों के कार्यक्रम करवाना, हर शहर/गाँव के मुख्य मंदिरों पर टीवी स्क्रीन लगाकर कार्यक्रम का लाइव प्रसारण कराना और इसमें लोगों की भागीदारी कराना, 22 जनवरी को सभी प्रमुख मंदिरों में भंडारों का आयोजन कराना, मंदिरों में साफ़ सफाई, दीप प्रज्वलन के साथ ही “श्रीराम-जानकी आधारित” सांस्कृतिक आयोजन करवाना, शहरों में नगरीय विकास तथा आवास विभाग, गाँवों में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा साफ़-सफाई के साथ सभी सरकारी इमारतों तथा स्कूल एवं कालेजों में साज-सज्जा करवाना, प्रदेश के सभी सरकारी कार्यालयों में 16 से 21 जनवरी विशेष सफाई अभियान और 21 से 26 जनवरी तक झालरें लटकाने – लाइटिंग – की व्यवस्था करवाना, 11 से 21 जनवरी तक प्रदेश के 20 जिलों में हो रही रामलीलाओं – श्रीरामचरित लीला समारोह – के लिए समस्त आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित करना शामिल हैं। कलेक्टरों को सौंपा गया नौवां काम है “स्पेशल ट्रेनों तथा सड़क मार्गों से अयोध्या जा रहे तीर्थ यात्रियों के सम्मान/स्वागत की व्यवस्थाएं स्थानीय निकायों तथा स्थानीय जनों के सहयोग से सुनिश्चित करना।“

भारतीय संविधान के तहत निर्वाचित, उसके अनुरूप चलने की शपथ लेकर सत्तासीन हुई सरकार का यह आदेश भारत दैट इज इंडिया में राजकाज चलाने की अब तक की परम्परा से एकदम अलग तो है ही, खुद संविधान सम्मत प्रावधानों के प्रतिकूल और विरुद्ध भी है।

भारत का संविधान धर्म और उसके साथ शासन के रिश्तों और बर्ताब के बारे में बिलकुल भी अस्पष्ट नहीं है, यह एकदम साफ़-साफ़ प्रावधान करता है। संविधान के अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक में इस बारे में स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है। एकदम दो टूक शब्दों में कहा गया है कि भारत का कोई भी एक आधिकारिक राज्य धर्म नहीं होगा। देश में रहने वाले हर व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, उसके अनुरूप आचरण करने और अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार होगा। उसके इस अधिकार का संरक्षण करने की गारंटी संविधान देता है और कहता है कि ऐसा हो सके, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार की होगी। संविधान यह भी कहता है कि सरकार किसी भी एक धर्म के प्रति राग या द्वेष से काम नहीं लेगी, न किसी धर्म का विरोध किया जाएगा, न ही किसी खास धर्म का समर्थन किया जाएगा।

संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रत्येक व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वास और सिद्धांतों का प्रसार करने का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 27 के अनुसार नागरिकों को किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संस्था की स्थापना या पोषण के बदले में कर – टैक्स – देने के लिये बाध्य नहीं किया जायेगा। वहीं अनुच्छेद 28 के द्वारा सरकारी शिक्षण संस्थाओं में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दिए जाने का प्रावधान किया गया है। अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए यह अनुच्छेद कहता है कि “राज्य-निधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।” यह भी कि “राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली शिक्षा संस्था में उपस्थित होने वाले किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में दी जाने वाली धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए या ऐसी संस्था में या उससे संलग्न स्थान में की जाने वाली धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के लिए तब तक बाध्य नहीं किया जाएगा, जब तक कि उस व्यक्ति ने, या यदि वह अवयस्क है, तो उसके संरक्षक ने, इसके लिए अपनी सहमति नहीं दे दी है।”

इस तरह से पहली नजर में ही मध्यप्रदेश सरकार का यह “आदेश” भारत के संविधान – जिसकी 75वी सालगिरह का वर्ष इसी 26 जनवरी से शुरू हो रहा है – का सिरे से उल्लंघन करने वाला है। क़ानून की भाषा में ऐसा कृत्य आपराधिक और दंडनीय माना जाता है।

भारत का संविधान 251 पृष्ठों में लिखी 395 अनुच्छेद और 25 भागों में विभाजित, 12 अनुसूचियों में लिखे कुछ नियम-कानूनों का संकलन नहीं है, यह कुछ पढ़े-लिखे समझदार लोगों द्वारा अपनी पसंद और रूचि से लिखी बातों का संग्रह भी नहीं है, यह शून्य में से अवतरित, नाजिल हुई अपौरुषेय किताब भी नहीं है। यह कोई दो सौ साल तक चली आजादी की लड़ाई में कुर्बान हुए शहीदों की अस्थि की कलम से उनके बहाए खून से लिखी गयी इबारत है। उन इंसानों के इतिहास की विराट लड़ाई में शामिल सभी धाराओं के आजाद भारत के स्वरुप के बारे में समझदारी का सार है यह 5 हजार वर्षों की सभ्यता के हासिल अनुभवों का निचोड़ है। यह धर्माधारित राष्ट्र की बेहूदा और पागलपन की अवधारणा का धिक्कार और नकार है। यह भारत को दूसरा पाकिस्तान बनाने की कोशिश का अस्वीकार है।

सत्ता और धर्म को अलग रखने को लेकर बहसें आजादी की लड़ाई के तीखे दमन के बीच भी चलीं। अपनी हर प्रार्थना सभा में ‘रघुपति राघव राजा राम’ गाने और गवाने वाले, एक जहरीली विचारधारा से मंत्रबिद्ध उन्मादी हत्यारे की पिस्तौल से निकली गोलियां खाने के बाद जिनके मुंह से आख़िरी शब्द “हे राम” निकले, वे पक्के हिन्दू महात्मा गांधी भी कहते थे कि “राज्य का कोई धर्म नहीं हो सकता, भले उसे मानने वाली आबादी 100 फीसदी क्यों न हो। धर्म एक व्यक्तिगत मामला है, इसका राज्य के साथ कोई संबंध नहीं होना चाहिए।” वे कहते थे कि “राजनीति में धर्म बिलकुल नहीं होना चाहिए, मैं यदि कभी डिक्टेटर बना, तो राजनीति में धर्म को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दूंगा।” देश में रामराज्य लाने की बात कहने वाले गांधी कहते थे कि “मैं जिस रामराज्य की बात कहता हूँ, उसका मतलब राम का या धर्म का राज नहीं है। मैं जब पख्तूनों के बीच जाता हूँ, तो खुदाई राज और ईसाइयों के बीच जाता हूँ तो गॉड के राज की बात करता हूँ। इसका मतलब धार्मिक राज नहीं है, समता और सहिष्णुता का शासन है, नैतिक समाज का आधार है।” उन्होंने बार-बार कहा कि “धर्म राष्ट्रीयता का आधार नहीं हो सकता। धर्म और संस्कृति अलग अलग है।”

गांधी अकेले नहीं थे – उनकी धारा के सभी नेता उनके साथ थे। उनकी रीति-नीति से असहमत भी इस मामले में उनके साथ थे। भगतसिंह से लेकर समाजवादियों, वामपंथियों, जाति और वर्ण के शोषण निर्मूलन के समर्थक पेरियार, डॉ अम्बेडकर जैसी धाराओं सहित सभी आन्दोलन और संगठन इस मामले में एकमत थे। इसी आम राय का नतीजा था कि जो पाकिस्तान की तर्ज पर भारत को भी धर्माधारित राष्ट्र बनाना चाहते थे, मुहम्मद अली जिन्ना से भी 20 साल पहले जो हिंदुओं के लिए अलग राष्ट्र की मांग कर चुके थे, कुम्भ के मेले में बिछड़े जिन्ना के उन सहोदरों को भारत ने – समूचे भारत ने – निर्णायक रूप से ठुकरा दिया था। इसलिए मध्यप्रदेश सरकार का 12 जनवरी का आदेश इस सबका विलोम और तिरस्कार दोनों है।

पिछले दो सप्ताहों से आ रही खबरों से अब आम हिन्दुस्तानी भी समझ चुके हैं कि अयोध्या के आयोजन से उस हिन्दू धर्म का भी कितना संबंध है, जिसके नाम से देश की लंका लगाने की यह विराट परियोजना लाई गयी है। संघी ट्रोल आर्मी जिस भाषा में, जितनी निर्लज्जता के साथ चारों शंकराचार्यों की भद्रा उतार रही है, वह असाधारण निकृष्टता का एक उदाहरण है। अधबने मंदिर के लिए खरीदी गयी जमीन के घोटालों के लिए ज्यादा चर्चित, मोदी सरकार द्वारा गठित न्यास के सचिव चम्पत राय का इस मंदिर को सभी भारतीयों, सभी हिन्दुओं का न मानना और इसे भारतीय धार्मिक परम्पराओं के सिर्फ एक छोटे से सम्प्रदाय – रामानंदी सम्प्रदाय – का बताना, शैव, शाक्त, सन्यासियों सहित सैकड़ों धार्मिक धाराओं को इससे दूर रखना दूसरा उदाहरण है। रामभद्राचार्य के अभद्रतम बोल वचन तीसरा उदाहरण हैं ।

ऐसे उदाहरण अनेक हैं जो इस बात को आईने की तरह साफ़ कर देते हैं कि यह धर्म के नाम पर, धर्म की कीमत पर, धर्म की मर्यादा और उसमे लोक आस्था का अलाव जलाकर उस पर एक पार्टी विशेष – भाजपा – द्वारा अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने का धतकरम है। इस पार्टी को भरम है कि ऐसा करके वह कुछ महीनों बाद होने वाले चुनावों को जीतने लायक कुहासा और अन्धेरा पैदा करने में कामयाब हो जायेगी।

मगर जैसा कि अब पूरी तरह उजागर हो चुका है, यह सिर्फ वोट जुगाड़ने वाली चुनावी राजनीति तक सीमित खतरा नहीं है ; यह राम के बहाने संविधान और गणतंत्र पर निशाना साधने की साजिश है। यह खुद इस शब्द के जनक सावरकर के मुताबिक़, जिसका “हिन्दू धर्म की परम्पराओं और मान्यताओं के साथ कोई संबंध नहीं है”, उस हिंदुत्व पर आधारित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की ओर आगे बढना है। एक ऐसा राज लाना है, जिसमें शासन करने वाले मनु के कहे पर चलाएंगे, बाकी सब घंटा बजायेंगे, बस अडानी-जैसे दौलत कमाएंगे।

अब यह भारत दैट इज इंडिया को तय करना है कि वह ऐसा अपकर्म होने देगा कि नहीं।

(लेखक ‘लोकजतन’ के सम्पादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94250-06716)

राम तो बहाना है, संविधान और गणतंत्र पर निशाना है!!
(आलेख : बादल सरोज)

अयोध्या में अभी तक अधबने मंदिर को लेकर देश भर में चलाई जा रही मुहिम की श्रृंखला में मध्य प्रदेश की सरकार ने बची-खुची संवैधानिक मर्यादा को भी लांघ दिया है। मध्यप्रदेश सरकार के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव के हस्ताक्षरों से 12 जनवरी को समस्त कलेक्टरों के लिए एक आदेश जारी किया गया है। इस आदेश में उन्होंने अयोध्या में निर्माणाधीन अधूरी इमारत – जिसे राम मंदिर कहा जा रहा है – के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के तारतम्य में 16 से 22 जनवरी तक सभी सरकारी भवनों, स्कूलों, मंदिरों, गाँवों, कस्बों, शहरों में किये जाने वाले आयोजनों को सूचीबद्ध करते हुए कलेक्टरों को उनके प्रबंधन के निर्देश दिए हैं। इस तरह पूरे सप्ताह भर तक मध्य प्रदेश की सरकार, जिस काम के लिए उसे चुना गया है, अपना वह सारा कामकाज छोड़कर दीये जलायेगी, मन्दिर सजायेगी, भंडारे करवायेगी और सरकारी बिल्डिंगों पर झालरें लटकवायेगी। इस आशय के बाकायदा आदेश भी जारी कर दिए गए हैं।

12 जनवरी को प्रदेश के सभी कलेक्टरों के लिए जारी किये गए आदेश क्रमांक 42/2024/अमुस/धर्मस्व का विषय है : “अयोध्या में दिनांक 22/01/2024 को प्रस्तावित भगवान श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम के तारतम्य में प्रदेश में विभिन्न आयोजन किये जाने संबंधी।“ मध्यप्रदेश शासन के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ राजेश राजौरा के हस्ताक्षरों से जारी इस आदेश में प्रदेश के सभी कलेक्टरों से 9 काम करने के लिए कहा गया है। इन कामों में पहला काम 16 जनवरी से 22 जनवरी तक प्रत्येक मंदिर में राम कीर्तन कराने, मंदिरों में दीप जलाने और हर घर में दीपोत्सव के लिए आमजन को जाग्रत करने का है।

इस पहले काम के अलावा बाकी के आठ कामों में हर नगर तथा हर गाँव में राम मंडलियों के कार्यक्रम करवाना, हर शहर/गाँव के मुख्य मंदिरों पर टीवी स्क्रीन लगाकर कार्यक्रम का लाइव प्रसारण कराना और इसमें लोगों की भागीदारी कराना, 22 जनवरी को सभी प्रमुख मंदिरों में भंडारों का आयोजन कराना, मंदिरों में साफ़ सफाई, दीप प्रज्वलन के साथ ही “श्रीराम-जानकी आधारित” सांस्कृतिक आयोजन करवाना, शहरों में नगरीय विकास तथा आवास विभाग, गाँवों में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा साफ़-सफाई के साथ सभी सरकारी इमारतों तथा स्कूल एवं कालेजों में साज-सज्जा करवाना, प्रदेश के सभी सरकारी कार्यालयों में 16 से 21 जनवरी विशेष सफाई अभियान और 21 से 26 जनवरी तक झालरें लटकाने – लाइटिंग – की व्यवस्था करवाना, 11 से 21 जनवरी तक प्रदेश के 20 जिलों में हो रही रामलीलाओं – श्रीरामचरित लीला समारोह – के लिए समस्त आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित करना शामिल हैं। कलेक्टरों को सौंपा गया नौवां काम है “स्पेशल ट्रेनों तथा सड़क मार्गों से अयोध्या जा रहे तीर्थ यात्रियों के सम्मान/स्वागत की व्यवस्थाएं स्थानीय निकायों तथा स्थानीय जनों के सहयोग से सुनिश्चित करना।“

भारतीय संविधान के तहत निर्वाचित, उसके अनुरूप चलने की शपथ लेकर सत्तासीन हुई सरकार का यह आदेश भारत दैट इज इंडिया में राजकाज चलाने की अब तक की परम्परा से एकदम अलग तो है ही, खुद संविधान सम्मत प्रावधानों के प्रतिकूल और विरुद्ध भी है।

भारत का संविधान धर्म और उसके साथ शासन के रिश्तों और बर्ताब के बारे में बिलकुल भी अस्पष्ट नहीं है, यह एकदम साफ़-साफ़ प्रावधान करता है। संविधान के अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक में इस बारे में स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है। एकदम दो टूक शब्दों में कहा गया है कि भारत का कोई भी एक आधिकारिक राज्य धर्म नहीं होगा। देश में रहने वाले हर व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, उसके अनुरूप आचरण करने और अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार होगा। उसके इस अधिकार का संरक्षण करने की गारंटी संविधान देता है और कहता है कि ऐसा हो सके, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार की होगी। संविधान यह भी कहता है कि सरकार किसी भी एक धर्म के प्रति राग या द्वेष से काम नहीं लेगी, न किसी धर्म का विरोध किया जाएगा, न ही किसी खास धर्म का समर्थन किया जाएगा।

संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रत्येक व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वास और सिद्धांतों का प्रसार करने का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 27 के अनुसार नागरिकों को किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संस्था की स्थापना या पोषण के बदले में कर – टैक्स – देने के लिये बाध्य नहीं किया जायेगा। वहीं अनुच्छेद 28 के द्वारा सरकारी शिक्षण संस्थाओं में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दिए जाने का प्रावधान किया गया है। अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए यह अनुच्छेद कहता है कि “राज्य-निधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।” यह भी कि “राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली शिक्षा संस्था में उपस्थित होने वाले किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में दी जाने वाली धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए या ऐसी संस्था में या उससे संलग्न स्थान में की जाने वाली धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के लिए तब तक बाध्य नहीं किया जाएगा, जब तक कि उस व्यक्ति ने, या यदि वह अवयस्क है, तो उसके संरक्षक ने, इसके लिए अपनी सहमति नहीं दे दी है।”

इस तरह से पहली नजर में ही मध्यप्रदेश सरकार का यह “आदेश” भारत के संविधान – जिसकी 75वी सालगिरह का वर्ष इसी 26 जनवरी से शुरू हो रहा है – का सिरे से उल्लंघन करने वाला है। क़ानून की भाषा में ऐसा कृत्य आपराधिक और दंडनीय माना जाता है।

भारत का संविधान 251 पृष्ठों में लिखी 395 अनुच्छेद और 25 भागों में विभाजित, 12 अनुसूचियों में लिखे कुछ नियम-कानूनों का संकलन नहीं है, यह कुछ पढ़े-लिखे समझदार लोगों द्वारा अपनी पसंद और रूचि से लिखी बातों का संग्रह भी नहीं है, यह शून्य में से अवतरित, नाजिल हुई अपौरुषेय किताब भी नहीं है। यह कोई दो सौ साल तक चली आजादी की लड़ाई में कुर्बान हुए शहीदों की अस्थि की कलम से उनके बहाए खून से लिखी गयी इबारत है। उन इंसानों के इतिहास की विराट लड़ाई में शामिल सभी धाराओं के आजाद भारत के स्वरुप के बारे में समझदारी का सार है यह 5 हजार वर्षों की सभ्यता के हासिल अनुभवों का निचोड़ है। यह धर्माधारित राष्ट्र की बेहूदा और पागलपन की अवधारणा का धिक्कार और नकार है। यह भारत को दूसरा पाकिस्तान बनाने की कोशिश का अस्वीकार है।

सत्ता और धर्म को अलग रखने को लेकर बहसें आजादी की लड़ाई के तीखे दमन के बीच भी चलीं। अपनी हर प्रार्थना सभा में ‘रघुपति राघव राजा राम’ गाने और गवाने वाले, एक जहरीली विचारधारा से मंत्रबिद्ध उन्मादी हत्यारे की पिस्तौल से निकली गोलियां खाने के बाद जिनके मुंह से आख़िरी शब्द “हे राम” निकले, वे पक्के हिन्दू महात्मा गांधी भी कहते थे कि “राज्य का कोई धर्म नहीं हो सकता, भले उसे मानने वाली आबादी 100 फीसदी क्यों न हो। धर्म एक व्यक्तिगत मामला है, इसका राज्य के साथ कोई संबंध नहीं होना चाहिए।” वे कहते थे कि “राजनीति में धर्म बिलकुल नहीं होना चाहिए, मैं यदि कभी डिक्टेटर बना, तो राजनीति में धर्म को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दूंगा।” देश में रामराज्य लाने की बात कहने वाले गांधी कहते थे कि “मैं जिस रामराज्य की बात कहता हूँ, उसका मतलब राम का या धर्म का राज नहीं है। मैं जब पख्तूनों के बीच जाता हूँ, तो खुदाई राज और ईसाइयों के बीच जाता हूँ तो गॉड के राज की बात करता हूँ। इसका मतलब धार्मिक राज नहीं है, समता और सहिष्णुता का शासन है, नैतिक समाज का आधार है।” उन्होंने बार-बार कहा कि “धर्म राष्ट्रीयता का आधार नहीं हो सकता। धर्म और संस्कृति अलग अलग है।”

गांधी अकेले नहीं थे – उनकी धारा के सभी नेता उनके साथ थे। उनकी रीति-नीति से असहमत भी इस मामले में उनके साथ थे। भगतसिंह से लेकर समाजवादियों, वामपंथियों, जाति और वर्ण के शोषण निर्मूलन के समर्थक पेरियार, डॉ अम्बेडकर जैसी धाराओं सहित सभी आन्दोलन और संगठन इस मामले में एकमत थे। इसी आम राय का नतीजा था कि जो पाकिस्तान की तर्ज पर भारत को भी धर्माधारित राष्ट्र बनाना चाहते थे, मुहम्मद अली जिन्ना से भी 20 साल पहले जो हिंदुओं के लिए अलग राष्ट्र की मांग कर चुके थे, कुम्भ के मेले में बिछड़े जिन्ना के उन सहोदरों को भारत ने – समूचे भारत ने – निर्णायक रूप से ठुकरा दिया था। इसलिए मध्यप्रदेश सरकार का 12 जनवरी का आदेश इस सबका विलोम और तिरस्कार दोनों है।

पिछले दो सप्ताहों से आ रही खबरों से अब आम हिन्दुस्तानी भी समझ चुके हैं कि अयोध्या के आयोजन से उस हिन्दू धर्म का भी कितना संबंध है, जिसके नाम से देश की लंका लगाने की यह विराट परियोजना लाई गयी है। संघी ट्रोल आर्मी जिस भाषा में, जितनी निर्लज्जता के साथ चारों शंकराचार्यों की भद्रा उतार रही है, वह असाधारण निकृष्टता का एक उदाहरण है। अधबने मंदिर के लिए खरीदी गयी जमीन के घोटालों के लिए ज्यादा चर्चित, मोदी सरकार द्वारा गठित न्यास के सचिव चम्पत राय का इस मंदिर को सभी भारतीयों, सभी हिन्दुओं का न मानना और इसे भारतीय धार्मिक परम्पराओं के सिर्फ एक छोटे से सम्प्रदाय – रामानंदी सम्प्रदाय – का बताना, शैव, शाक्त, सन्यासियों सहित सैकड़ों धार्मिक धाराओं को इससे दूर रखना दूसरा उदाहरण है। रामभद्राचार्य के अभद्रतम बोल वचन तीसरा उदाहरण हैं ।

ऐसे उदाहरण अनेक हैं जो इस बात को आईने की तरह साफ़ कर देते हैं कि यह धर्म के नाम पर, धर्म की कीमत पर, धर्म की मर्यादा और उसमे लोक आस्था का अलाव जलाकर उस पर एक पार्टी विशेष – भाजपा – द्वारा अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने का धतकरम है। इस पार्टी को भरम है कि ऐसा करके वह कुछ महीनों बाद होने वाले चुनावों को जीतने लायक कुहासा और अन्धेरा पैदा करने में कामयाब हो जायेगी।

मगर जैसा कि अब पूरी तरह उजागर हो चुका है, यह सिर्फ वोट जुगाड़ने वाली चुनावी राजनीति तक सीमित खतरा नहीं है ; यह राम के बहाने संविधान और गणतंत्र पर निशाना साधने की साजिश है। यह खुद इस शब्द के जनक सावरकर के मुताबिक़, जिसका “हिन्दू धर्म की परम्पराओं और मान्यताओं के साथ कोई संबंध नहीं है”, उस हिंदुत्व पर आधारित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की ओर आगे बढना है। एक ऐसा राज लाना है, जिसमें शासन करने वाले मनु के कहे पर चलाएंगे, बाकी सब घंटा बजायेंगे, बस अडानी-जैसे दौलत कमाएंगे।

अब यह भारत दैट इज इंडिया को तय करना है कि वह ऐसा अपकर्म होने देगा कि नहीं।