हाथों में चूड़ियां, माथे पर बिंदी…’गर्लफ्रेंड का रूप धारण कर’ उसकी परीक्षा देने पहुंचा युवक, लेकिन प्‍लान हुआ फेल : पंजाब

हाथों में चूड़ियां, माथे पर बिंदी...'गर्लफ्रेंड का रूप धारण कर' उसकी परीक्षा देने पहुंचा युवक, लेकिन प्‍लान हुआ फेल

फरीदकोट: पंजाब के फरीदकोट में एक परीक्षा केंद्र पर एक युवक द्वारा अपनी प्रेमिका का रूप धारण करके अधिकारियों को चकमा देने की कोशिश एक हास्यास्‍पद तमाशा बनकर रह गई. 7 जनवरी को कोटकपूरा के डीएवी पब्लिक स्कूल में बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज द्वारा बहुउद्देश्यीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता परीक्षा आयोजित की गई थी. फाजिल्का के अंग्रेज सिंह ने अपनी प्रेमिका परमजीत कौर का भेष धारण करके परीक्षा देने का फैसला किया. हाथों में लाल चूड़ियां, माथे पर बिंदी, होंठों पर लिपस्टिक और महिला सूट में सजे अंग्रेज सिंह परीक्षा देने के लिए तैयार थे.

फुलप्रूफ प्‍लान ऐसे हुआ फेल
पंजाब के सबसे अप्रत्याशित कॉमेडी एक्ट के लिए मंच तैयार किया गया था, क्योंकि विश्वविद्यालय के अधिकारियों को तुरंत इस नाटक की भनक लग गई और उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी. पुलिस के अनुसार, अंग्रेज सिंह ने यह साबित करने के लिए कि वह परमजीत कौर है, फर्जी मतदाता और आधार कार्ड का इस्तेमाल करते हुए पूरी कोशिश की थी. यह योजना उस दुर्भाग्यपूर्ण क्षण तक फुलप्रूफ लग रही थी, जब उसकी उंगलियों के निशान बायोमेट्रिक डिवाइस पर असली उम्मीदवार से मेल नहीं खाए. अंग्रेज सिंह ने शायद नहीं सोचा होगा कि वह उंगलियों के निशान से फंस जाएगा.

बायोमेट्रिक डिवाइस ने पकड़ा…
पुलिस के अनुसार, अंग्रेज सिंह ने यह साबित करने के लिए कि वह परमजीत कौर है, फर्जी मतदाता और आधार कार्ड का इस्तेमाल करते हुए पूरी कोशिश की. यह योजना उस दुर्भाग्यपूर्ण क्षण तक फुलप्रूफ लग रही थी, जब उसकी उंगलियों के निशान बायोमेट्रिक डिवाइस पर वास्तविक उम्मीदवार से मेल खाने में विफल रहे. ऐसे में परमजीत कौर का आवेदन अस्‍वीकार कर दिया है. 

इस बीच, अंग्रेज सिंह के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई है. पुलिस ने अंग्रेज सिंह को हिरासत में ले लिया है. पुलिस यह भी जांच कर रही है कि कहीं अंग्रेज सिंह ने किसी अन्‍य की परीक्षा इससे पहले तो नहीं दी थी.  

राम तो बहाना है, संविधान और गणतंत्र पर निशाना है!!(आलेख : बादल सरोज)

अयोध्या में अभी तक अधबने मंदिर को लेकर देश भर में चलाई जा रही मुहिम की श्रृंखला में मध्य प्रदेश की सरकार ने बची-खुची संवैधानिक मर्यादा को भी लांघ दिया है। मध्यप्रदेश सरकार के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव के हस्ताक्षरों से 12 जनवरी को समस्त कलेक्टरों के लिए एक आदेश जारी किया गया है। इस आदेश में उन्होंने अयोध्या में निर्माणाधीन अधूरी इमारत – जिसे राम मंदिर कहा जा रहा है – के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के तारतम्य में 16 से 22 जनवरी तक सभी सरकारी भवनों, स्कूलों, मंदिरों, गाँवों, कस्बों, शहरों में किये जाने वाले आयोजनों को सूचीबद्ध करते हुए कलेक्टरों को उनके प्रबंधन के निर्देश दिए हैं। इस तरह पूरे सप्ताह भर तक मध्य प्रदेश की सरकार, जिस काम के लिए उसे चुना गया है, अपना वह सारा कामकाज छोड़कर दीये जलायेगी, मन्दिर सजायेगी, भंडारे करवायेगी और सरकारी बिल्डिंगों पर झालरें लटकवायेगी। इस आशय के बाकायदा आदेश भी जारी कर दिए गए हैं।

12 जनवरी को प्रदेश के सभी कलेक्टरों के लिए जारी किये गए आदेश क्रमांक 42/2024/अमुस/धर्मस्व का विषय है : “अयोध्या में दिनांक 22/01/2024 को प्रस्तावित भगवान श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम के तारतम्य में प्रदेश में विभिन्न आयोजन किये जाने संबंधी।“ मध्यप्रदेश शासन के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ राजेश राजौरा के हस्ताक्षरों से जारी इस आदेश में प्रदेश के सभी कलेक्टरों से 9 काम करने के लिए कहा गया है। इन कामों में पहला काम 16 जनवरी से 22 जनवरी तक प्रत्येक मंदिर में राम कीर्तन कराने, मंदिरों में दीप जलाने और हर घर में दीपोत्सव के लिए आमजन को जाग्रत करने का है।

इस पहले काम के अलावा बाकी के आठ कामों में हर नगर तथा हर गाँव में राम मंडलियों के कार्यक्रम करवाना, हर शहर/गाँव के मुख्य मंदिरों पर टीवी स्क्रीन लगाकर कार्यक्रम का लाइव प्रसारण कराना और इसमें लोगों की भागीदारी कराना, 22 जनवरी को सभी प्रमुख मंदिरों में भंडारों का आयोजन कराना, मंदिरों में साफ़ सफाई, दीप प्रज्वलन के साथ ही “श्रीराम-जानकी आधारित” सांस्कृतिक आयोजन करवाना, शहरों में नगरीय विकास तथा आवास विभाग, गाँवों में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा साफ़-सफाई के साथ सभी सरकारी इमारतों तथा स्कूल एवं कालेजों में साज-सज्जा करवाना, प्रदेश के सभी सरकारी कार्यालयों में 16 से 21 जनवरी विशेष सफाई अभियान और 21 से 26 जनवरी तक झालरें लटकाने – लाइटिंग – की व्यवस्था करवाना, 11 से 21 जनवरी तक प्रदेश के 20 जिलों में हो रही रामलीलाओं – श्रीरामचरित लीला समारोह – के लिए समस्त आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित करना शामिल हैं। कलेक्टरों को सौंपा गया नौवां काम है “स्पेशल ट्रेनों तथा सड़क मार्गों से अयोध्या जा रहे तीर्थ यात्रियों के सम्मान/स्वागत की व्यवस्थाएं स्थानीय निकायों तथा स्थानीय जनों के सहयोग से सुनिश्चित करना।“

भारतीय संविधान के तहत निर्वाचित, उसके अनुरूप चलने की शपथ लेकर सत्तासीन हुई सरकार का यह आदेश भारत दैट इज इंडिया में राजकाज चलाने की अब तक की परम्परा से एकदम अलग तो है ही, खुद संविधान सम्मत प्रावधानों के प्रतिकूल और विरुद्ध भी है।

भारत का संविधान धर्म और उसके साथ शासन के रिश्तों और बर्ताब के बारे में बिलकुल भी अस्पष्ट नहीं है, यह एकदम साफ़-साफ़ प्रावधान करता है। संविधान के अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक में इस बारे में स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है। एकदम दो टूक शब्दों में कहा गया है कि भारत का कोई भी एक आधिकारिक राज्य धर्म नहीं होगा। देश में रहने वाले हर व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, उसके अनुरूप आचरण करने और अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार होगा। उसके इस अधिकार का संरक्षण करने की गारंटी संविधान देता है और कहता है कि ऐसा हो सके, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार की होगी। संविधान यह भी कहता है कि सरकार किसी भी एक धर्म के प्रति राग या द्वेष से काम नहीं लेगी, न किसी धर्म का विरोध किया जाएगा, न ही किसी खास धर्म का समर्थन किया जाएगा।

संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रत्येक व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वास और सिद्धांतों का प्रसार करने का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 27 के अनुसार नागरिकों को किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संस्था की स्थापना या पोषण के बदले में कर – टैक्स – देने के लिये बाध्य नहीं किया जायेगा। वहीं अनुच्छेद 28 के द्वारा सरकारी शिक्षण संस्थाओं में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दिए जाने का प्रावधान किया गया है। अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए यह अनुच्छेद कहता है कि “राज्य-निधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।” यह भी कि “राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली शिक्षा संस्था में उपस्थित होने वाले किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में दी जाने वाली धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए या ऐसी संस्था में या उससे संलग्न स्थान में की जाने वाली धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के लिए तब तक बाध्य नहीं किया जाएगा, जब तक कि उस व्यक्ति ने, या यदि वह अवयस्क है, तो उसके संरक्षक ने, इसके लिए अपनी सहमति नहीं दे दी है।”

इस तरह से पहली नजर में ही मध्यप्रदेश सरकार का यह “आदेश” भारत के संविधान – जिसकी 75वी सालगिरह का वर्ष इसी 26 जनवरी से शुरू हो रहा है – का सिरे से उल्लंघन करने वाला है। क़ानून की भाषा में ऐसा कृत्य आपराधिक और दंडनीय माना जाता है।

भारत का संविधान 251 पृष्ठों में लिखी 395 अनुच्छेद और 25 भागों में विभाजित, 12 अनुसूचियों में लिखे कुछ नियम-कानूनों का संकलन नहीं है, यह कुछ पढ़े-लिखे समझदार लोगों द्वारा अपनी पसंद और रूचि से लिखी बातों का संग्रह भी नहीं है, यह शून्य में से अवतरित, नाजिल हुई अपौरुषेय किताब भी नहीं है। यह कोई दो सौ साल तक चली आजादी की लड़ाई में कुर्बान हुए शहीदों की अस्थि की कलम से उनके बहाए खून से लिखी गयी इबारत है। उन इंसानों के इतिहास की विराट लड़ाई में शामिल सभी धाराओं के आजाद भारत के स्वरुप के बारे में समझदारी का सार है यह 5 हजार वर्षों की सभ्यता के हासिल अनुभवों का निचोड़ है। यह धर्माधारित राष्ट्र की बेहूदा और पागलपन की अवधारणा का धिक्कार और नकार है। यह भारत को दूसरा पाकिस्तान बनाने की कोशिश का अस्वीकार है।

सत्ता और धर्म को अलग रखने को लेकर बहसें आजादी की लड़ाई के तीखे दमन के बीच भी चलीं। अपनी हर प्रार्थना सभा में ‘रघुपति राघव राजा राम’ गाने और गवाने वाले, एक जहरीली विचारधारा से मंत्रबिद्ध उन्मादी हत्यारे की पिस्तौल से निकली गोलियां खाने के बाद जिनके मुंह से आख़िरी शब्द “हे राम” निकले, वे पक्के हिन्दू महात्मा गांधी भी कहते थे कि “राज्य का कोई धर्म नहीं हो सकता, भले उसे मानने वाली आबादी 100 फीसदी क्यों न हो। धर्म एक व्यक्तिगत मामला है, इसका राज्य के साथ कोई संबंध नहीं होना चाहिए।” वे कहते थे कि “राजनीति में धर्म बिलकुल नहीं होना चाहिए, मैं यदि कभी डिक्टेटर बना, तो राजनीति में धर्म को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दूंगा।” देश में रामराज्य लाने की बात कहने वाले गांधी कहते थे कि “मैं जिस रामराज्य की बात कहता हूँ, उसका मतलब राम का या धर्म का राज नहीं है। मैं जब पख्तूनों के बीच जाता हूँ, तो खुदाई राज और ईसाइयों के बीच जाता हूँ तो गॉड के राज की बात करता हूँ। इसका मतलब धार्मिक राज नहीं है, समता और सहिष्णुता का शासन है, नैतिक समाज का आधार है।” उन्होंने बार-बार कहा कि “धर्म राष्ट्रीयता का आधार नहीं हो सकता। धर्म और संस्कृति अलग अलग है।”

गांधी अकेले नहीं थे – उनकी धारा के सभी नेता उनके साथ थे। उनकी रीति-नीति से असहमत भी इस मामले में उनके साथ थे। भगतसिंह से लेकर समाजवादियों, वामपंथियों, जाति और वर्ण के शोषण निर्मूलन के समर्थक पेरियार, डॉ अम्बेडकर जैसी धाराओं सहित सभी आन्दोलन और संगठन इस मामले में एकमत थे। इसी आम राय का नतीजा था कि जो पाकिस्तान की तर्ज पर भारत को भी धर्माधारित राष्ट्र बनाना चाहते थे, मुहम्मद अली जिन्ना से भी 20 साल पहले जो हिंदुओं के लिए अलग राष्ट्र की मांग कर चुके थे, कुम्भ के मेले में बिछड़े जिन्ना के उन सहोदरों को भारत ने – समूचे भारत ने – निर्णायक रूप से ठुकरा दिया था। इसलिए मध्यप्रदेश सरकार का 12 जनवरी का आदेश इस सबका विलोम और तिरस्कार दोनों है।

पिछले दो सप्ताहों से आ रही खबरों से अब आम हिन्दुस्तानी भी समझ चुके हैं कि अयोध्या के आयोजन से उस हिन्दू धर्म का भी कितना संबंध है, जिसके नाम से देश की लंका लगाने की यह विराट परियोजना लाई गयी है। संघी ट्रोल आर्मी जिस भाषा में, जितनी निर्लज्जता के साथ चारों शंकराचार्यों की भद्रा उतार रही है, वह असाधारण निकृष्टता का एक उदाहरण है। अधबने मंदिर के लिए खरीदी गयी जमीन के घोटालों के लिए ज्यादा चर्चित, मोदी सरकार द्वारा गठित न्यास के सचिव चम्पत राय का इस मंदिर को सभी भारतीयों, सभी हिन्दुओं का न मानना और इसे भारतीय धार्मिक परम्पराओं के सिर्फ एक छोटे से सम्प्रदाय – रामानंदी सम्प्रदाय – का बताना, शैव, शाक्त, सन्यासियों सहित सैकड़ों धार्मिक धाराओं को इससे दूर रखना दूसरा उदाहरण है। रामभद्राचार्य के अभद्रतम बोल वचन तीसरा उदाहरण हैं ।

ऐसे उदाहरण अनेक हैं जो इस बात को आईने की तरह साफ़ कर देते हैं कि यह धर्म के नाम पर, धर्म की कीमत पर, धर्म की मर्यादा और उसमे लोक आस्था का अलाव जलाकर उस पर एक पार्टी विशेष – भाजपा – द्वारा अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने का धतकरम है। इस पार्टी को भरम है कि ऐसा करके वह कुछ महीनों बाद होने वाले चुनावों को जीतने लायक कुहासा और अन्धेरा पैदा करने में कामयाब हो जायेगी।

मगर जैसा कि अब पूरी तरह उजागर हो चुका है, यह सिर्फ वोट जुगाड़ने वाली चुनावी राजनीति तक सीमित खतरा नहीं है ; यह राम के बहाने संविधान और गणतंत्र पर निशाना साधने की साजिश है। यह खुद इस शब्द के जनक सावरकर के मुताबिक़, जिसका “हिन्दू धर्म की परम्पराओं और मान्यताओं के साथ कोई संबंध नहीं है”, उस हिंदुत्व पर आधारित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की ओर आगे बढना है। एक ऐसा राज लाना है, जिसमें शासन करने वाले मनु के कहे पर चलाएंगे, बाकी सब घंटा बजायेंगे, बस अडानी-जैसे दौलत कमाएंगे।

अब यह भारत दैट इज इंडिया को तय करना है कि वह ऐसा अपकर्म होने देगा कि नहीं।

(लेखक ‘लोकजतन’ के सम्पादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94250-06716)

राम तो बहाना है, संविधान और गणतंत्र पर निशाना है!!
(आलेख : बादल सरोज)

अयोध्या में अभी तक अधबने मंदिर को लेकर देश भर में चलाई जा रही मुहिम की श्रृंखला में मध्य प्रदेश की सरकार ने बची-खुची संवैधानिक मर्यादा को भी लांघ दिया है। मध्यप्रदेश सरकार के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव के हस्ताक्षरों से 12 जनवरी को समस्त कलेक्टरों के लिए एक आदेश जारी किया गया है। इस आदेश में उन्होंने अयोध्या में निर्माणाधीन अधूरी इमारत – जिसे राम मंदिर कहा जा रहा है – के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के तारतम्य में 16 से 22 जनवरी तक सभी सरकारी भवनों, स्कूलों, मंदिरों, गाँवों, कस्बों, शहरों में किये जाने वाले आयोजनों को सूचीबद्ध करते हुए कलेक्टरों को उनके प्रबंधन के निर्देश दिए हैं। इस तरह पूरे सप्ताह भर तक मध्य प्रदेश की सरकार, जिस काम के लिए उसे चुना गया है, अपना वह सारा कामकाज छोड़कर दीये जलायेगी, मन्दिर सजायेगी, भंडारे करवायेगी और सरकारी बिल्डिंगों पर झालरें लटकवायेगी। इस आशय के बाकायदा आदेश भी जारी कर दिए गए हैं।

12 जनवरी को प्रदेश के सभी कलेक्टरों के लिए जारी किये गए आदेश क्रमांक 42/2024/अमुस/धर्मस्व का विषय है : “अयोध्या में दिनांक 22/01/2024 को प्रस्तावित भगवान श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम के तारतम्य में प्रदेश में विभिन्न आयोजन किये जाने संबंधी।“ मध्यप्रदेश शासन के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ राजेश राजौरा के हस्ताक्षरों से जारी इस आदेश में प्रदेश के सभी कलेक्टरों से 9 काम करने के लिए कहा गया है। इन कामों में पहला काम 16 जनवरी से 22 जनवरी तक प्रत्येक मंदिर में राम कीर्तन कराने, मंदिरों में दीप जलाने और हर घर में दीपोत्सव के लिए आमजन को जाग्रत करने का है।

इस पहले काम के अलावा बाकी के आठ कामों में हर नगर तथा हर गाँव में राम मंडलियों के कार्यक्रम करवाना, हर शहर/गाँव के मुख्य मंदिरों पर टीवी स्क्रीन लगाकर कार्यक्रम का लाइव प्रसारण कराना और इसमें लोगों की भागीदारी कराना, 22 जनवरी को सभी प्रमुख मंदिरों में भंडारों का आयोजन कराना, मंदिरों में साफ़ सफाई, दीप प्रज्वलन के साथ ही “श्रीराम-जानकी आधारित” सांस्कृतिक आयोजन करवाना, शहरों में नगरीय विकास तथा आवास विभाग, गाँवों में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा साफ़-सफाई के साथ सभी सरकारी इमारतों तथा स्कूल एवं कालेजों में साज-सज्जा करवाना, प्रदेश के सभी सरकारी कार्यालयों में 16 से 21 जनवरी विशेष सफाई अभियान और 21 से 26 जनवरी तक झालरें लटकाने – लाइटिंग – की व्यवस्था करवाना, 11 से 21 जनवरी तक प्रदेश के 20 जिलों में हो रही रामलीलाओं – श्रीरामचरित लीला समारोह – के लिए समस्त आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित करना शामिल हैं। कलेक्टरों को सौंपा गया नौवां काम है “स्पेशल ट्रेनों तथा सड़क मार्गों से अयोध्या जा रहे तीर्थ यात्रियों के सम्मान/स्वागत की व्यवस्थाएं स्थानीय निकायों तथा स्थानीय जनों के सहयोग से सुनिश्चित करना।“

भारतीय संविधान के तहत निर्वाचित, उसके अनुरूप चलने की शपथ लेकर सत्तासीन हुई सरकार का यह आदेश भारत दैट इज इंडिया में राजकाज चलाने की अब तक की परम्परा से एकदम अलग तो है ही, खुद संविधान सम्मत प्रावधानों के प्रतिकूल और विरुद्ध भी है।

भारत का संविधान धर्म और उसके साथ शासन के रिश्तों और बर्ताब के बारे में बिलकुल भी अस्पष्ट नहीं है, यह एकदम साफ़-साफ़ प्रावधान करता है। संविधान के अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक में इस बारे में स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है। एकदम दो टूक शब्दों में कहा गया है कि भारत का कोई भी एक आधिकारिक राज्य धर्म नहीं होगा। देश में रहने वाले हर व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, उसके अनुरूप आचरण करने और अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार होगा। उसके इस अधिकार का संरक्षण करने की गारंटी संविधान देता है और कहता है कि ऐसा हो सके, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार की होगी। संविधान यह भी कहता है कि सरकार किसी भी एक धर्म के प्रति राग या द्वेष से काम नहीं लेगी, न किसी धर्म का विरोध किया जाएगा, न ही किसी खास धर्म का समर्थन किया जाएगा।

संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रत्येक व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वास और सिद्धांतों का प्रसार करने का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 27 के अनुसार नागरिकों को किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संस्था की स्थापना या पोषण के बदले में कर – टैक्स – देने के लिये बाध्य नहीं किया जायेगा। वहीं अनुच्छेद 28 के द्वारा सरकारी शिक्षण संस्थाओं में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दिए जाने का प्रावधान किया गया है। अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए यह अनुच्छेद कहता है कि “राज्य-निधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।” यह भी कि “राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली शिक्षा संस्था में उपस्थित होने वाले किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में दी जाने वाली धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए या ऐसी संस्था में या उससे संलग्न स्थान में की जाने वाली धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के लिए तब तक बाध्य नहीं किया जाएगा, जब तक कि उस व्यक्ति ने, या यदि वह अवयस्क है, तो उसके संरक्षक ने, इसके लिए अपनी सहमति नहीं दे दी है।”

इस तरह से पहली नजर में ही मध्यप्रदेश सरकार का यह “आदेश” भारत के संविधान – जिसकी 75वी सालगिरह का वर्ष इसी 26 जनवरी से शुरू हो रहा है – का सिरे से उल्लंघन करने वाला है। क़ानून की भाषा में ऐसा कृत्य आपराधिक और दंडनीय माना जाता है।

भारत का संविधान 251 पृष्ठों में लिखी 395 अनुच्छेद और 25 भागों में विभाजित, 12 अनुसूचियों में लिखे कुछ नियम-कानूनों का संकलन नहीं है, यह कुछ पढ़े-लिखे समझदार लोगों द्वारा अपनी पसंद और रूचि से लिखी बातों का संग्रह भी नहीं है, यह शून्य में से अवतरित, नाजिल हुई अपौरुषेय किताब भी नहीं है। यह कोई दो सौ साल तक चली आजादी की लड़ाई में कुर्बान हुए शहीदों की अस्थि की कलम से उनके बहाए खून से लिखी गयी इबारत है। उन इंसानों के इतिहास की विराट लड़ाई में शामिल सभी धाराओं के आजाद भारत के स्वरुप के बारे में समझदारी का सार है यह 5 हजार वर्षों की सभ्यता के हासिल अनुभवों का निचोड़ है। यह धर्माधारित राष्ट्र की बेहूदा और पागलपन की अवधारणा का धिक्कार और नकार है। यह भारत को दूसरा पाकिस्तान बनाने की कोशिश का अस्वीकार है।

सत्ता और धर्म को अलग रखने को लेकर बहसें आजादी की लड़ाई के तीखे दमन के बीच भी चलीं। अपनी हर प्रार्थना सभा में ‘रघुपति राघव राजा राम’ गाने और गवाने वाले, एक जहरीली विचारधारा से मंत्रबिद्ध उन्मादी हत्यारे की पिस्तौल से निकली गोलियां खाने के बाद जिनके मुंह से आख़िरी शब्द “हे राम” निकले, वे पक्के हिन्दू महात्मा गांधी भी कहते थे कि “राज्य का कोई धर्म नहीं हो सकता, भले उसे मानने वाली आबादी 100 फीसदी क्यों न हो। धर्म एक व्यक्तिगत मामला है, इसका राज्य के साथ कोई संबंध नहीं होना चाहिए।” वे कहते थे कि “राजनीति में धर्म बिलकुल नहीं होना चाहिए, मैं यदि कभी डिक्टेटर बना, तो राजनीति में धर्म को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दूंगा।” देश में रामराज्य लाने की बात कहने वाले गांधी कहते थे कि “मैं जिस रामराज्य की बात कहता हूँ, उसका मतलब राम का या धर्म का राज नहीं है। मैं जब पख्तूनों के बीच जाता हूँ, तो खुदाई राज और ईसाइयों के बीच जाता हूँ तो गॉड के राज की बात करता हूँ। इसका मतलब धार्मिक राज नहीं है, समता और सहिष्णुता का शासन है, नैतिक समाज का आधार है।” उन्होंने बार-बार कहा कि “धर्म राष्ट्रीयता का आधार नहीं हो सकता। धर्म और संस्कृति अलग अलग है।”

गांधी अकेले नहीं थे – उनकी धारा के सभी नेता उनके साथ थे। उनकी रीति-नीति से असहमत भी इस मामले में उनके साथ थे। भगतसिंह से लेकर समाजवादियों, वामपंथियों, जाति और वर्ण के शोषण निर्मूलन के समर्थक पेरियार, डॉ अम्बेडकर जैसी धाराओं सहित सभी आन्दोलन और संगठन इस मामले में एकमत थे। इसी आम राय का नतीजा था कि जो पाकिस्तान की तर्ज पर भारत को भी धर्माधारित राष्ट्र बनाना चाहते थे, मुहम्मद अली जिन्ना से भी 20 साल पहले जो हिंदुओं के लिए अलग राष्ट्र की मांग कर चुके थे, कुम्भ के मेले में बिछड़े जिन्ना के उन सहोदरों को भारत ने – समूचे भारत ने – निर्णायक रूप से ठुकरा दिया था। इसलिए मध्यप्रदेश सरकार का 12 जनवरी का आदेश इस सबका विलोम और तिरस्कार दोनों है।

पिछले दो सप्ताहों से आ रही खबरों से अब आम हिन्दुस्तानी भी समझ चुके हैं कि अयोध्या के आयोजन से उस हिन्दू धर्म का भी कितना संबंध है, जिसके नाम से देश की लंका लगाने की यह विराट परियोजना लाई गयी है। संघी ट्रोल आर्मी जिस भाषा में, जितनी निर्लज्जता के साथ चारों शंकराचार्यों की भद्रा उतार रही है, वह असाधारण निकृष्टता का एक उदाहरण है। अधबने मंदिर के लिए खरीदी गयी जमीन के घोटालों के लिए ज्यादा चर्चित, मोदी सरकार द्वारा गठित न्यास के सचिव चम्पत राय का इस मंदिर को सभी भारतीयों, सभी हिन्दुओं का न मानना और इसे भारतीय धार्मिक परम्पराओं के सिर्फ एक छोटे से सम्प्रदाय – रामानंदी सम्प्रदाय – का बताना, शैव, शाक्त, सन्यासियों सहित सैकड़ों धार्मिक धाराओं को इससे दूर रखना दूसरा उदाहरण है। रामभद्राचार्य के अभद्रतम बोल वचन तीसरा उदाहरण हैं ।

ऐसे उदाहरण अनेक हैं जो इस बात को आईने की तरह साफ़ कर देते हैं कि यह धर्म के नाम पर, धर्म की कीमत पर, धर्म की मर्यादा और उसमे लोक आस्था का अलाव जलाकर उस पर एक पार्टी विशेष – भाजपा – द्वारा अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने का धतकरम है। इस पार्टी को भरम है कि ऐसा करके वह कुछ महीनों बाद होने वाले चुनावों को जीतने लायक कुहासा और अन्धेरा पैदा करने में कामयाब हो जायेगी।

मगर जैसा कि अब पूरी तरह उजागर हो चुका है, यह सिर्फ वोट जुगाड़ने वाली चुनावी राजनीति तक सीमित खतरा नहीं है ; यह राम के बहाने संविधान और गणतंत्र पर निशाना साधने की साजिश है। यह खुद इस शब्द के जनक सावरकर के मुताबिक़, जिसका “हिन्दू धर्म की परम्पराओं और मान्यताओं के साथ कोई संबंध नहीं है”, उस हिंदुत्व पर आधारित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की ओर आगे बढना है। एक ऐसा राज लाना है, जिसमें शासन करने वाले मनु के कहे पर चलाएंगे, बाकी सब घंटा बजायेंगे, बस अडानी-जैसे दौलत कमाएंगे।

अब यह भारत दैट इज इंडिया को तय करना है कि वह ऐसा अपकर्म होने देगा कि नहीं।

राम तो बहाना है, संविधान और गणतंत्र पर निशाना है!!(आलेख : बादल सरोज)

राम तो बहाना है, संविधान और गणतंत्र पर निशाना है!!
(आलेख : बादल सरोज)

अयोध्या में अभी तक अधबने मंदिर को लेकर देश भर में चलाई जा रही मुहिम की श्रृंखला में मध्य प्रदेश की सरकार ने बची-खुची संवैधानिक मर्यादा को भी लांघ दिया है। मध्यप्रदेश सरकार के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव के हस्ताक्षरों से 12 जनवरी को समस्त कलेक्टरों के लिए एक आदेश जारी किया गया है। इस आदेश में उन्होंने अयोध्या में निर्माणाधीन अधूरी इमारत – जिसे राम मंदिर कहा जा रहा है – के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के तारतम्य में 16 से 22 जनवरी तक सभी सरकारी भवनों, स्कूलों, मंदिरों, गाँवों, कस्बों, शहरों में किये जाने वाले आयोजनों को सूचीबद्ध करते हुए कलेक्टरों को उनके प्रबंधन के निर्देश दिए हैं। इस तरह पूरे सप्ताह भर तक मध्य प्रदेश की सरकार, जिस काम के लिए उसे चुना गया है, अपना वह सारा कामकाज छोड़कर दीये जलायेगी, मन्दिर सजायेगी, भंडारे करवायेगी और सरकारी बिल्डिंगों पर झालरें लटकवायेगी। इस आशय के बाकायदा आदेश भी जारी कर दिए गए हैं।

12 जनवरी को प्रदेश के सभी कलेक्टरों के लिए जारी किये गए आदेश क्रमांक 42/2024/अमुस/धर्मस्व का विषय है : “अयोध्या में दिनांक 22/01/2024 को प्रस्तावित भगवान श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम के तारतम्य में प्रदेश में विभिन्न आयोजन किये जाने संबंधी।“ मध्यप्रदेश शासन के धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ राजेश राजौरा के हस्ताक्षरों से जारी इस आदेश में प्रदेश के सभी कलेक्टरों से 9 काम करने के लिए कहा गया है। इन कामों में पहला काम 16 जनवरी से 22 जनवरी तक प्रत्येक मंदिर में राम कीर्तन कराने, मंदिरों में दीप जलाने और हर घर में दीपोत्सव के लिए आमजन को जाग्रत करने का है।

इस पहले काम के अलावा बाकी के आठ कामों में हर नगर तथा हर गाँव में राम मंडलियों के कार्यक्रम करवाना, हर शहर/गाँव के मुख्य मंदिरों पर टीवी स्क्रीन लगाकर कार्यक्रम का लाइव प्रसारण कराना और इसमें लोगों की भागीदारी कराना, 22 जनवरी को सभी प्रमुख मंदिरों में भंडारों का आयोजन कराना, मंदिरों में साफ़ सफाई, दीप प्रज्वलन के साथ ही “श्रीराम-जानकी आधारित” सांस्कृतिक आयोजन करवाना, शहरों में नगरीय विकास तथा आवास विभाग, गाँवों में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा साफ़-सफाई के साथ सभी सरकारी इमारतों तथा स्कूल एवं कालेजों में साज-सज्जा करवाना, प्रदेश के सभी सरकारी कार्यालयों में 16 से 21 जनवरी विशेष सफाई अभियान और 21 से 26 जनवरी तक झालरें लटकाने – लाइटिंग – की व्यवस्था करवाना, 11 से 21 जनवरी तक प्रदेश के 20 जिलों में हो रही रामलीलाओं – श्रीरामचरित लीला समारोह – के लिए समस्त आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित करना शामिल हैं। कलेक्टरों को सौंपा गया नौवां काम है “स्पेशल ट्रेनों तथा सड़क मार्गों से अयोध्या जा रहे तीर्थ यात्रियों के सम्मान/स्वागत की व्यवस्थाएं स्थानीय निकायों तथा स्थानीय जनों के सहयोग से सुनिश्चित करना।“

भारतीय संविधान के तहत निर्वाचित, उसके अनुरूप चलने की शपथ लेकर सत्तासीन हुई सरकार का यह आदेश भारत दैट इज इंडिया में राजकाज चलाने की अब तक की परम्परा से एकदम अलग तो है ही, खुद संविधान सम्मत प्रावधानों के प्रतिकूल और विरुद्ध भी है।

भारत का संविधान धर्म और उसके साथ शासन के रिश्तों और बर्ताब के बारे में बिलकुल भी अस्पष्ट नहीं है, यह एकदम साफ़-साफ़ प्रावधान करता है। संविधान के अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक में इस बारे में स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है। एकदम दो टूक शब्दों में कहा गया है कि भारत का कोई भी एक आधिकारिक राज्य धर्म नहीं होगा। देश में रहने वाले हर व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, उसके अनुरूप आचरण करने और अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार होगा। उसके इस अधिकार का संरक्षण करने की गारंटी संविधान देता है और कहता है कि ऐसा हो सके, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार की होगी। संविधान यह भी कहता है कि सरकार किसी भी एक धर्म के प्रति राग या द्वेष से काम नहीं लेगी, न किसी धर्म का विरोध किया जाएगा, न ही किसी खास धर्म का समर्थन किया जाएगा।

संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रत्येक व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वास और सिद्धांतों का प्रसार करने का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 27 के अनुसार नागरिकों को किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संस्था की स्थापना या पोषण के बदले में कर – टैक्स – देने के लिये बाध्य नहीं किया जायेगा। वहीं अनुच्छेद 28 के द्वारा सरकारी शिक्षण संस्थाओं में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दिए जाने का प्रावधान किया गया है। अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए यह अनुच्छेद कहता है कि “राज्य-निधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।” यह भी कि “राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली शिक्षा संस्था में उपस्थित होने वाले किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में दी जाने वाली धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए या ऐसी संस्था में या उससे संलग्न स्थान में की जाने वाली धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के लिए तब तक बाध्य नहीं किया जाएगा, जब तक कि उस व्यक्ति ने, या यदि वह अवयस्क है, तो उसके संरक्षक ने, इसके लिए अपनी सहमति नहीं दे दी है।”

इस तरह से पहली नजर में ही मध्यप्रदेश सरकार का यह “आदेश” भारत के संविधान – जिसकी 75वी सालगिरह का वर्ष इसी 26 जनवरी से शुरू हो रहा है – का सिरे से उल्लंघन करने वाला है। क़ानून की भाषा में ऐसा कृत्य आपराधिक और दंडनीय माना जाता है।

भारत का संविधान 251 पृष्ठों में लिखी 395 अनुच्छेद और 25 भागों में विभाजित, 12 अनुसूचियों में लिखे कुछ नियम-कानूनों का संकलन नहीं है, यह कुछ पढ़े-लिखे समझदार लोगों द्वारा अपनी पसंद और रूचि से लिखी बातों का संग्रह भी नहीं है, यह शून्य में से अवतरित, नाजिल हुई अपौरुषेय किताब भी नहीं है। यह कोई दो सौ साल तक चली आजादी की लड़ाई में कुर्बान हुए शहीदों की अस्थि की कलम से उनके बहाए खून से लिखी गयी इबारत है। उन इंसानों के इतिहास की विराट लड़ाई में शामिल सभी धाराओं के आजाद भारत के स्वरुप के बारे में समझदारी का सार है यह 5 हजार वर्षों की सभ्यता के हासिल अनुभवों का निचोड़ है। यह धर्माधारित राष्ट्र की बेहूदा और पागलपन की अवधारणा का धिक्कार और नकार है। यह भारत को दूसरा पाकिस्तान बनाने की कोशिश का अस्वीकार है।

सत्ता और धर्म को अलग रखने को लेकर बहसें आजादी की लड़ाई के तीखे दमन के बीच भी चलीं। अपनी हर प्रार्थना सभा में ‘रघुपति राघव राजा राम’ गाने और गवाने वाले, एक जहरीली विचारधारा से मंत्रबिद्ध उन्मादी हत्यारे की पिस्तौल से निकली गोलियां खाने के बाद जिनके मुंह से आख़िरी शब्द “हे राम” निकले, वे पक्के हिन्दू महात्मा गांधी भी कहते थे कि “राज्य का कोई धर्म नहीं हो सकता, भले उसे मानने वाली आबादी 100 फीसदी क्यों न हो। धर्म एक व्यक्तिगत मामला है, इसका राज्य के साथ कोई संबंध नहीं होना चाहिए।” वे कहते थे कि “राजनीति में धर्म बिलकुल नहीं होना चाहिए, मैं यदि कभी डिक्टेटर बना, तो राजनीति में धर्म को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दूंगा।” देश में रामराज्य लाने की बात कहने वाले गांधी कहते थे कि “मैं जिस रामराज्य की बात कहता हूँ, उसका मतलब राम का या धर्म का राज नहीं है। मैं जब पख्तूनों के बीच जाता हूँ, तो खुदाई राज और ईसाइयों के बीच जाता हूँ तो गॉड के राज की बात करता हूँ। इसका मतलब धार्मिक राज नहीं है, समता और सहिष्णुता का शासन है, नैतिक समाज का आधार है।” उन्होंने बार-बार कहा कि “धर्म राष्ट्रीयता का आधार नहीं हो सकता। धर्म और संस्कृति अलग अलग है।”

गांधी अकेले नहीं थे – उनकी धारा के सभी नेता उनके साथ थे। उनकी रीति-नीति से असहमत भी इस मामले में उनके साथ थे। भगतसिंह से लेकर समाजवादियों, वामपंथियों, जाति और वर्ण के शोषण निर्मूलन के समर्थक पेरियार, डॉ अम्बेडकर जैसी धाराओं सहित सभी आन्दोलन और संगठन इस मामले में एकमत थे। इसी आम राय का नतीजा था कि जो पाकिस्तान की तर्ज पर भारत को भी धर्माधारित राष्ट्र बनाना चाहते थे, मुहम्मद अली जिन्ना से भी 20 साल पहले जो हिंदुओं के लिए अलग राष्ट्र की मांग कर चुके थे, कुम्भ के मेले में बिछड़े जिन्ना के उन सहोदरों को भारत ने – समूचे भारत ने – निर्णायक रूप से ठुकरा दिया था। इसलिए मध्यप्रदेश सरकार का 12 जनवरी का आदेश इस सबका विलोम और तिरस्कार दोनों है।

पिछले दो सप्ताहों से आ रही खबरों से अब आम हिन्दुस्तानी भी समझ चुके हैं कि अयोध्या के आयोजन से उस हिन्दू धर्म का भी कितना संबंध है, जिसके नाम से देश की लंका लगाने की यह विराट परियोजना लाई गयी है। संघी ट्रोल आर्मी जिस भाषा में, जितनी निर्लज्जता के साथ चारों शंकराचार्यों की भद्रा उतार रही है, वह असाधारण निकृष्टता का एक उदाहरण है। अधबने मंदिर के लिए खरीदी गयी जमीन के घोटालों के लिए ज्यादा चर्चित, मोदी सरकार द्वारा गठित न्यास के सचिव चम्पत राय का इस मंदिर को सभी भारतीयों, सभी हिन्दुओं का न मानना और इसे भारतीय धार्मिक परम्पराओं के सिर्फ एक छोटे से सम्प्रदाय – रामानंदी सम्प्रदाय – का बताना, शैव, शाक्त, सन्यासियों सहित सैकड़ों धार्मिक धाराओं को इससे दूर रखना दूसरा उदाहरण है। रामभद्राचार्य के अभद्रतम बोल वचन तीसरा उदाहरण हैं ।

ऐसे उदाहरण अनेक हैं जो इस बात को आईने की तरह साफ़ कर देते हैं कि यह धर्म के नाम पर, धर्म की कीमत पर, धर्म की मर्यादा और उसमे लोक आस्था का अलाव जलाकर उस पर एक पार्टी विशेष – भाजपा – द्वारा अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने का धतकरम है। इस पार्टी को भरम है कि ऐसा करके वह कुछ महीनों बाद होने वाले चुनावों को जीतने लायक कुहासा और अन्धेरा पैदा करने में कामयाब हो जायेगी।

मगर जैसा कि अब पूरी तरह उजागर हो चुका है, यह सिर्फ वोट जुगाड़ने वाली चुनावी राजनीति तक सीमित खतरा नहीं है ; यह राम के बहाने संविधान और गणतंत्र पर निशाना साधने की साजिश है। यह खुद इस शब्द के जनक सावरकर के मुताबिक़, जिसका “हिन्दू धर्म की परम्पराओं और मान्यताओं के साथ कोई संबंध नहीं है”, उस हिंदुत्व पर आधारित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की ओर आगे बढना है। एक ऐसा राज लाना है, जिसमें शासन करने वाले मनु के कहे पर चलाएंगे, बाकी सब घंटा बजायेंगे, बस अडानी-जैसे दौलत कमाएंगे।

अब यह भारत दैट इज इंडिया को तय करना है कि वह ऐसा अपकर्म होने देगा कि नहीं।

अपराधियों पर नकेल कसने, अपराधियों पर लगाया जा रहा लगाम,वही दुसरी ओर बदमाशों ने भनपुरी क्षेत्र में मचाया उत्पात।

अपराधियों पर नकेल कसने, अपराधियों पर लगाया जा रहा लगाम,वही दुसरी ओर बदमाशों ने भनपुरी क्षेत्र में मचाया उत्पात।

रायपुर न्यूज/ खमतराई थाना क्षेत्र भनपुरी में बदमाशों का हौसला बुलंद, लाठी डंडों से लैस, मालूम हो कि अपराधों पर नकेल कसने सहित सुरक्षा व शांति व्यवस्था के मद्देनजर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक श्री प्रशांत अग्रवाल द्वारा समस्त पुलिस राजपत्रित अधिकारियों एवं थाना प्रभारियों को अपने – अपने थाना क्षेत्रों के सक्रिय गुण्डा/निगरानी बदमाशों, अपराधिक तत्वों, संदिग्ध व्यक्तियों, चाकू लेकर घुमने वालों, अड्डेबाजी करने वालो सहित उपद्रवी लोगों पर आवश्यक वैधानिक कार्यवाही करने के निर्देश दिये गये है।

वहीं दूसरी ओर भनपुरी में शाम को युवकों द्वारा जमकर उत्पात मचाया लाठी डंडों से लैस 30/35 के करीब युवकों ने उत्पात मचाते हुए कई वाहनों में जमकर तोड़फोड़ की इस घटनाक्रम से भनपुरी क्षेत्र में माहौल गरमा गया घटनाक्रम से व्यथित स्थानीय निवासियों ने थाना खमतराई पहुंच कर घटना को लेकर विरोध जताया थाना खमतराई पुलिस मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्वरित कार्यवाही करते हुए दो आरोपियों को गिरफतार किया पुलिस सूत्रों के मुताबिक इस घटनाक्रम के मुख्य आरोपी पंकज कुशवाहा और इंद्रजीत सिंह को साइबर सेल व खमतराई पुलिस द्वारा संयुक्त रूप से कार्यवाही करते हुए गिरफ्तार किया गया सूत्रों के अनुसार दोनों आरोपी शहर से बाहर भागने की फिराक में थे जिसे थाना खमतराई पुलिस व साइबर सेल के तत्वरित कार्यवाही से आरोपीयों के भागने से पहले ही धर दबोचा अन्य आरोपीयों की तलाश जारी है समाचार लिखे जाने तक अन्य बाकी आरोपी पुलिस पकड़ से बाहर है।

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जोन क्र 05 नगर पालिक निगम का निविदा/टेंडर घोटाला उजागर

जोन क्र 05 नगर पालिक निगम का निविदा/टेंडर घोटाला उजागर।
रायपुर न्यूज/ नगर निगम में कई अनियमितता के मामले उजागर हुए परंतु नगर पालिक निगम रायपुर के जोन क्र 05 में एक बड़ा घोटाला सामने आया है जिसे खुद नगर पालिक निगम जोन क्र 05 के जोन कमिश्नर (जन सूचना अधिकारी) ने हुऐ घोटाले का लिखित में पुष्टि करते नजर आ रहे हैं यही नहीं बड़ी बात यह है कि सूचना अधिकार कानून के तहत जब जन सूचना अधिकारी ने लिखित में पुष्टि की तो आवेदक ने अगला कदम उठाते हुए प्रथम अपील किए जाने पर अपील अधिकारी द्वारा जोन कमिश्नर को आदेशित किया गया कि आवेदक द्वारा मांगी गई सूचना (जानकारी) निशुल्क दी जाए परंतु जन सूचना अधिकारी (जोन कमिश्नर जोन क्र 05) ने प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश को दरकिनार कर आवेदक को जानकारी नहीं दी गई, ऐसे में यह प्रतीत होता है कि आवेदक द्वारा मांगी गई सूचना व जन सूचना अधिकारी (जोन कमिश्नर) द्वारा दी गई जानकारी से यह पुष्टि हो रही है कि ज़ोन क्रमांक 05 में विगत वर्ष 2021-22 तथा वर्ष 2022-23 में ज़ोन क्रमांक 05 नगर पालिक निगम में हुए निविदा/ टेंडर में घोटाला किया गया है मालूम हो कि ज़ोन क्रमांक 05 नगर पालिक निगम में एक आवेदक ने सूचना का अधिकार कानून के तहत आवेदन किया है कि वर्ष 2021-22 तथा वर्ष 2022-23 में विकास कार्यों के निष्पादन के लिए पंजीकृत ठेकेदारों को निविदा/टेंडर का कार्य आदेश दिया गया है साथ ही स्वीकृत कार्यों के निष्पादन के लिए कार्य आदेश कापी, निविदा/ टेंडर के समय प्रस्तुत किया गया मय समस्त दस्तावेज, कार्य आदेश प्राप्त ठेकेदारों व लेबर लायसेंस की मांग किए जाने पर ज़ोन कमिश्नर ( श्री जन सूचना अधिकारी, श्री सुशील कुमार चौधरी) ने लिखित में जानकारी दी है कि आवेदक द्वारा चाही गई जानकारी के संबंध में किसी प्रकार नस्ती / दस्तावेज जोन कार्यालय में नहीं होने के कारण जानकारी निरंक है। परंतु सवाल सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस शासनकाल में ज़ोन क्रमांक 05 नगर पालिक निगम में विकास कार्यों को लेकर क्या निविदा/ टेंडर जारी नहीं किया गया है क्या उक्त जोन स्तर पर कार्य नहीं हुए हैं अगर कार्य किया गया है या निविदा/ टेंडर जारी किया गया है तो विभागीय (जोन स्तर) पर निविदा/ टेंडर से संबंधित दस्तावेज होनी चाहिए, जोन कमिश्नर (श्री जन सूचना अधिकारी) की लिखित जानकारी को अगर सही माना जाए तो फिर ज़ोन क्रमांक 05 नगर पालिक निगम द्वारा वर्ष 2021-22 तथा वर्ष 2022-23 में किस आधार पर शासकीय मद राशि किसे आंबटित कर किस ठेकेदारों जारी किया गया है ज़ोन क्रमांक 05 जोन कमिश्नर- सूचना अधिकारी द्वारा दि गई जानकारी गले से नहीं उतर रही है साथ ही यह साबित होता नजर आ रहा है कि ज़ोन क्रमांक 05 के द्वारा विगत वर्ष 2021-22 तथा वर्ष 2022-23 में निविदा/टेंडर घोटाला बड़े स्तर पर किया गया है ज्ञात हो कि निविदा/ टेंडर घोटाला को लेकर घनश्याम रक्सेल जवाहर नगर भाजपा उपाध्यक्ष ने श्री कलेक्टर के समक्ष जनदर्शन में शिकायत कर निविदा/ टेंडर तथा शासकीय मद राशि, कार्य आदेश, कार्य आदेश प्राप्त ठेकेदारों के संबंध में निष्पक्ष जांच की मांग की गई है जिस पर जनदर्शन में श्री कलेक्टर महोदय द्वारा निविदा/ टेंडर शिकायत पर जल्द ही जांच करने का आश्वासन दी गई है।
सवाल यह खडी हो रही है कि ज़ोन स्तर पर इतनी बड़ी निविदा / टेंडर घोटाला होना, शासकीय मद राशि का दुरूपयोग किया जाना, निविदा – टेंडर से संबंधित दस्तावेज, एवं कार्य आदेश प्राप्त ठेकेदारों की जानकारी जोन क्र 05 नगर पालिक निगम में नहीं हो पाना किस ओर इशारा कर रही है यह जांच के दौरान सामने आएगी या फिर इस बड़े निविदा – टेंडर घोटाले में लिपापोती की जाएगी यह समय की तकाजा पर निर्भर करती है।