
दीपका, ऊर्जाधानी भूविस्थापित किसान कल्याण समिति द्वारा 16 अप्रैल 2025 को प्रस्तावित हड़ताल ने दीपका और आसपास के क्षेत्रों में एक नई हलचल पैदा कर दी है। यह हड़ताल एस.ई.सी.एल. की परियोजनाओं के लिए भू-अर्जन से विस्थापित समुदायों के रोजगार, मुआवजा, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन की अनसुनी माँगों को लेकर आयोजित की जा रही है। इस आंदोलन को और मजबूती देते हुए स्थानीय निवासी उमागोपाल कुमार ने एक समर्थन पत्र जारी कर समिति के साथ अपनी एकजुटता जताई है, जिसने लोगों में न्याय की उम्मीद जगा दी है।
उमागोपाल कुमार ने अपने समर्थन पत्र में लिखा, “एस.ई.सी.एल. की परियोजनाओं ने स्थानीय समुदायों से उनकी जमीन, आजीविका और पारंपरिक अधिकार छीन लिए, लेकिन बदले में उन्हें उचित पुनर्वास और रोजगार नहीं मिला। यह हड़ताल विस्थापितों की पीड़ा और उनके हक की पुकार है। मैं समिति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हूँ।” उनके इस कदम को क्षेत्रवासियों ने एक साहसी और प्रेरणादायक पहल बताया है।
समिति की माँगें स्पष्ट और कानून-सम्मत हैं। पहली माँग है कि भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 के तहत विस्थापितों को रोजगार, मुआवजा और बुनियादी सुविधाएँ दी जाएँ। समिति का कहना है कि कोल इंडिया की मौजूदा नीति इस कानून के सामने अप्रासंगिक है, और कोल बेयरिंग एरिया एक्ट, 1957 के तहत हुए अर्जन पर भी केन्द्रीय कानून लागू होना चाहिए। दूसरी माँग हाईकोर्ट के आदेश के पालन की है, जिसमें 2012 से पहले अर्जित भूमि के छोटे खातेदारों और अर्जन के बाद जन्मे युवाओं को रोजगार देने और रैखिक संबंध की शर्त हटाने की बात कही गई है।
स्थानीय लोगों में इस हड़ताल को लेकर उत्साह है। एक प्रभावित किसान ने कहा, “हमारी जमीन गई, लेकिन हमें न नौकरी मिली न सम्मान। यह हड़ताल हमारी आवाज को दिल्ली तक ले जाएगी।उमागोपाल कुमार के समर्थन ने इस आंदोलन को और बल दिया है। एक युवा ने बताया, “उमागोपाल” जी का साथ हमें हिम्मत देता है। यह सिर्फ हड़ताल नहीं, हमारे भविष्य की लड़ाई है।

16 अप्रैल की हड़ताल दीपका और आसपास के विस्थापित समुदायों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हो सकती है। यह न केवल उनकी अनसुनी माँगों को सामने लाएगी, बल्कि नीतिगत बदलाव की दिशा में भी एक बड़ा कदम हो सकती है।
उमागोपाल कुमार का समर्थन इस बात का प्रतीक है कि एकजुटता और साहस के साथ उठाई गई आवाज को अनदेखा करना मुश्किल है। अब सबकी नजर इस बात पर है कि यह हड़ताल विस्थापितों के लिए कितना बड़ा बदलाव ला पाएगी।